चेटीचंड जन्म समारोह आज

धर्म,चेटीचंड आज विविधता में एकता का प्रतीक भारत एक अद्भुत जगह है, जहां अनगिनत संस्कृतियां एकाकार होती हैं, यहां अनेकों धर्मों और मतों को मानने वाले लोग रहते हैं जो असंख्य त्योहारों को उत्साह के साथ मनाते हैं। सिंधी समुदाय का त्योहार चेटीचंड भी एक ऐसा ही त्योहार है। यह वरुण देव (जल देवता) साई झूलेलाल (जिनका एक नाम उदरोलाल भी है) का जन्मदिन समारोह है। सिंधिओं में इसे एक अत्यंत शुभ दिन माना जाता है और यह बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। सिंधियों के लिए, चेटीचंड नए साल की शुरुआत का प्रतीक है। मराठी नव वर्ष में आने वाले गुड़ी पड़वा के समान ही, चेटीचंड सिंधी समुदाय के नववर्ष की शुरूआत माना गया है।

इस दिन जल के देवता वरुणदेव की पूजा की जाती है। बहुत से लोग पूर्णिमा के दिन किसी झील या नदी के किनारे दूध और आटे में चावल मिलाकर ‘अखो’ चढ़ाने जाते हैं। यदि कोई नदी या ऐसा जलाशय पास में नहीं है, तो वे किसी कुएं पर इस रिवाज को निभाते हैं।

सिंधी नव वर्ष –
चेटीचंड आम तौर पर चैत्र शुक्ल पक्ष के पहले दिन, यानी हिंदू कैलेंडर के अनुसार चैत्र (सिंधी महीने) महीने की शुरुआत में पड़ता है। यह कभी-कभी दूसरे दिन भी हो सकता है। यह ग्रेगरियन कैलेंडर के अनुसार मार्च और अप्रैल में आ सकता है।

चेटीचंड का महत्व
सिंधी इस त्योहार को भगवान झूलेलाल के जन्मदिन समारोह के रूप में मनाते हैं, जिन्हें उदरोलाल के नाम से भी जाना जाता है। उन्हें उनके संरक्षक संत के रूप में जाना जाता है। इस दिन वरुण देव झूलेलाल के रूप में अवतरित हुए थे। उन्होंने सिंधी संस्कृति और हिंदू धर्म को होने से बचाने के लिए अवतार लिया था। अत: इस दिन जल देवता की पूजा कर उनका आभार जताया जाता है। हिंदू पंचाग के चैत्र माह को एक महत्वपूर्ण महीना माना जाता है जिसे सिंधी समुदाय द्वारा ‘चेत’ कहा जाता है। इसके अलावा, उनके पंचांग के अनुसार प्रत्येक नया महीना अमावस्या यानी ‘चांद’ से शुरू होता है। इसलिए, उत्सव पूरे उत्साह के साथ मनाया जाता है और इस दिन को चेटीचंड नाम दिया गया है। किसी भी नए कार्य को शुरू करने के लिए चेटीचंड को अत्यधिक शुभ और फलदायी माना गया है।

चेटीचंड समारोह
इस दिन सिंधी समुदाय के लोग विभिन्न अनुष्ठान करते हैं और लगातार चालीस दिनों तक प्रार्थना करते हैं। इस भेंट को चालिहो के नाम से जाना जाता है। इसके बाद वे चेटीचंड का भव्य उत्सव मनाते हैं। उनमें से कई लोग इस दिन उपवास भी रखते हैं और व्रत पूर्ण होने पर फलों को ग्रहण कर अपना व्रत तोड़ते हैं।

अनुष्ठान निम्नानुसार किया जा सकता है:
बेहराना साहिब (जिसे भेंट भी कहा जाता है) बनाते हैं, इसमें तेल का दीया, इलायची, चीनी, फल और अखो रखा जाता है और इसे झील या नदी में ले जाते हैं। साथ ही भगवान झूलेलाल की प्रतिमा भी होती है।
गेंहू के आटे का दीपक बना कर उसमें पांच बाती वाली बत्ती जलाई जाती है, जिसे ज्योति जगन कहते हैं।
फिर बेहराना साहिब को पानी में विसर्जित कर भगवान को प्रसन्न करने तथा आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए पल्लव गाएं जाते हैं और प्रसाद बांटे जाते हैं।
इस दिन जरूरतमंदों को भोजन तथा कपड़े देने जैसे धर्मार्थ कार्य किए जाते हैं।

भगवान झूलेलाल की पूजा करने के बाद, सिंधी समुदाय के लोग नाटक, नृत्य, संगीत के माध्यम से अपनी समृद्ध संस्कृति का प्रदर्शन करते हैं। लोग अपने परिवार और दोस्तों के साथ खाने के लिए स्वादिष्ट भोजन भी बनाते हैं। इसके अलावा, वे एक-दूसरे से मिलते हैं और “चेटीचंड ज्यों लख लख बधाईयां आठव” कहते हैं और बधाई देते हैं। झूलेलाल जयंती या सिंधी नव वर्ष सभी के लिए एक साथ उत्साह, आनंद और लालित्य का एक भव्य आयोजन है।

राजेन्द्र गुप्ता,
ज्योतिषी और हस्तरेखाविद

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